उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाकई शर्म की बात है.
3.
क्रमशः उपार्जित धन का विनाश हो जाने पर भी खेद नहीं करना चाहिए जहाँ पर अपना कुछ वश नही चलता, वहाँ पर क्या खेद करना? वहाँ पर पुनः उद्योग करना ही उचित है।
4.
हमे अपने अपने परिवारों से ये शिक्षा मिलती है की अपनी बातों को सरल एवम विनम्रता से रखना चाहिए और यदि किसी बात का खेद करना है तो सभ्य समाज की सीमाएं नहीं लाहंगनी नहीं चाहिए।